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तेरे होंठो मे भी क्या
खूब नशा था,
यूँ लगता है जैसे,
तेरे झूठे पानी से ही
शराब बनती है.
बाप की गरीबी और
माँ के पहनावे पर,
कभी शर्म मत करना.
गूंगे और बहरे होकर मंजिलों
की तरफ़ बढो,
ये भीड़ का शोर तुम्हें गुमराह
कर सकता है.
पूछा जब उसने मुझसे क्या
चल रहा है,
मैंने हंसकर कहा बस
"साँसे"
मुश्किल था अलविदा
कहना,
मगर बहुत जरुरी था
मेरा उनसे जुदा होना.
चाँद की कीमत वो
क्या जाने जो,
जो सूरज डूबते ही सो
जाते हैं.
किसी ने धूल क्या
झोंकी आँखों मे,
पहले से बेहतर दिखने
लगा है.
वो आए घर में हमारे,
खुदा की कुदरत हैं
कभी हम उनको,
कभी अपने घर को देखते हैं.
नींद भी महबूबा बन
गयी है,
बेवफा रात भर नही
आती.
छत टपकती थी उसके
कच्चे घर की,
वो किसान फिर भी बारिश
की दुआ करता है.
इस कदर तोडा है मुझे
उसकी बवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे
तो बिखर जाता हूँ मैं.
पापा की अहमियत उस
औलाद से पूछो,
जिन्हें उनसे मिलने के लिए,
कब्रिस्तान जाना पड़ता है.
बार-बार एहसास
दिलाना पड़े,
ऐसी मोहब्बत से तो
आवारगी अच्छी,
कितना खौफ होता है शाम
के अंधेरों मे,
पूछो उन परिन्दो से जिनका
घर नहीं होता.
हम तो फनाह हो गये
उसकी आँखे देखकर
ग़ालिब,
न जाने वो आईना कैसे
देखते होंगे.
आज भी दरवाजे से छुपकर
देखती है हर रोज मुझे,
गाँव का इश्क है जनाब,
शहर की नौटंकियाँ नहीं.
तेरे वादे पर जिये हम तो ये
सोच गालिब,
कि ख़ुशी से मर जाते अगर
एतवार न होता.
दोबारा इश्क हुआ तो
तुझी से होगा
खफा हूँ बेवफा नही.
अच्छा किया तूने मुझे
रूलाकर,
अब मैं लोगो को
हसाता हूँ.
जिसे टूटकर चाहा था,
उसी ने तोड़ दिया.
आप अपने शौक पूरे
कीजिये साहब,
हम अपनी जिंदगी के दिन
पूरे करते हैं.
खुद ही पागल करती हो,
फिर कहती हो,
पागल हो.
सुना है मुझे देखने
बाले,
कोई और नशा नही
करते .
वो रिश्ता प्यार का था ही
नही,
और मैं पागल प्रेम कहानी
लिखता गया.
हकीकत कुछ और
होती है जनाब,
हर गुमसुम बैठा इंसान
पागल नहीं होता.
इतनी जल्दी छोड़कर
चल दिये साहब,
अभी हम उजड़े हैं मरे
नहीं.
बदलते तो इंसान हैं ,
वक्त तो एक बहाना है.
जला है जिस्म जहाँ दिल भी
जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख
जुस्तजू क्या है.
बे-बजह नहीं रोता इश्क
में कोई गालिब,
जिसे ख़ुद से बढकर चाहो
वो रूलाता जरूर है.
हमको उनसे वफा की
है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा
कया है.
उसे सजा तो अपनी
अदालत में दूँगा,
क्योंकि वो प्यार भी मेरा
है और गुनेहगार भी.
जिद मत किया करो मेरी
दास्तान सुनने की साहब,
मैं हँसकर भी कहूंगा तो
तुम रोने लगोगे,
सुखर है साहब मौत सबको
आती है,
बरना अमीर तो इस बात का
भी मजाक उड़ाते,
गरीब था इसलिए मर गया
आदत मेरी अंधेरों से
लड़ने की डालकर,
एक शकक््स मेरी जिंदगी को
रात कर गया,
मेरे लफ्जों से ही
गुजारा कर लो,
मेरे अंदर उतरोगे तो
मर जाओगे,
छोड़ दिया अब तेरे ख्यालों
में जीना,
अब हम लोगों से नहीं,
लोग हमसे इश्क करते हैं.
चाय खत्म होने तक तुम
रुकने का वादा करो,
हम आखिरी घूँट भी आखिरी
साँस तक पीते रहेंगे.
क्या आज भी मेरा दिल
तुम्हारे पास महफूज है?
या उसे भी नीलाम कर दिया
मेरे इश्क की तरह.
हम आईना हैं आईना ही
रहेंगे,
फिक्र वो करे जिनकी
शक्लों मे कुछ
और दिल मे कुछ और
है,
सिर्फ इश्क करना सिखाया
मुझे,
थोड़ी नफरत करना भी
सिखाया होता तो,
आज आसानी होती जीने मे
देखना मुझे भी मिल
जायेगी मोहब्बत क्योंकि,
इस बार मैंने मोहब्बत
इंसान से नहीं अपने
"खुदा" से की है.
महंगी घड़ी खरीद रहे हो
तो बता दूँ जनाब,
घड़ी वक्त बताती है
बदलती नही.
लोग कहते हैं कि इस पागल
का कोई भरोसा नहीं,
कोई ये नहीं सोचता कि
भरोसे ने ही उसे पागल कर
दिया.
अगर जिस्म से लिपटना
आशिकी है तो साहब,
अजगर से बड़ा कोई
महबूब नही.
कोई मुझसे पूछ बैठा,
बदलना किसको कहते हैं,
सोच में पड़ गया हूँ मिसाल
किसकी दूँ,
मौसम की या अपनों की.
भरोसा टूटने की आवाज़
नहीं होती,
पर गूंज जिंदगी भर
सुनायी देती है.
वो कहती तो चाँद भी ले आता,
पर कमबख़्त ,
चाँद को चाँद का टुकड़ा देता,
तो क्या भला अच्छा लगता.
हमारा वास्ता हमेशा उन्हीं
लोगो से हुआ,
जो दिल पर वार करने
में शातिर थे,
टूटा हुआ ख्वाब और
रूठा हुआ अपना,
बहुत तकलीफ देते हैं.
संगत का जरा ध्यान रखना साहब,
संगत आपकी खराब होगी और,
बदनाम माँ-बाप और संस्कार होंगे
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